कुछ बातें बेटियां से बहुओं के लिए ।
कुछ बातें बेटियां से बहुओं के लिए ।
शायद मेरी बातो का बुरा जरूर लगेगा आप लोगों को पर सच हैं। जो यह समाज से दबाया नहीं जा सकता। सोचने और विचार करने से । यह बातें खत्म हो सकती है। नहीं तो यह बेटी से बहु बनने के सफर में एक जहर सास बहू के बीच में फैल जाता है। जिसकी कोई दवा नहीं है। सिर्फ एक विचार ही समाधान है।
आई हम इस बात को आप को एक कहानी के माधयम से समझाते हैं। की कमियां कहां होती हैं। कैसे हम जान पाते हैं। बस हमारी नजरों के सामने होता है बस हम देख नहीं पाते हैं।
जिन बेटियों से घर का काम नही होता है।उनको कहीं पर भी जीवन में उचित सम्मान ओर उचित स्थान नही मिलता पाता है।
एक व्यक्ति ने अपने बेटे का रिश्ता एक दूसरे के परिवार में तय किया और कुछ दिनों बाद वह व्यक्ति अपने होने वाले समधी के घर गया।तो देखा कि होने वाली समधन खाना बना रही थीं।सभी बच्चे और घर वाले और होने वाली बहू टी वी देख रही थी। उस व्यक्ति ने चाय पी और परिवार का हाल चाल और कुशलता जाना और फिर वहां से चले आये। अपने घर फिर एक माह बाद वह व्यक्ति फिर समधी जी के घर गया।देखा भाभी समधन जी झाड़ू लगा रहीं थी।बच्चे पढ़ रहे थे।और होने वाली बहू सो रही थी। और व्यक्ति ने खाना खाया।और हाल चाल पूछे फिर चले आये। अपने घर फिर कुछ दिन बाद वह व्यक्ति किसी काम से फिर होने वाले समधी जी के घर गया।घर में जाकर देखा होने वाली समधन बर्तन साफ़ कर रही थी।बच्चे टीवी देख रहे थे।और होने वाली बहू खुद के हाथों में मेहंदी लगा रही थी।फिर उस व्यक्ति ने घर आकर गहन सोच-विचार कर लड़की वालों के यहाँ खबर पहुचाई कि हमें ये रिश्ता मंजूर नहीं है।
और कारण पूछने पर उस व्यक्ति ने कहा कि मैं होने वाले समधी के घर तीन बार गया।तीनों बार सिर्फ समधन जी ही घर के काम काज में व्यस्त दिखीं।एक भी बार भी मुझे होने वाली बहू घर का काम काज करते हुए नहीं दिखी।जो कि मैं बहू के घर अलग-अलग दिनों और कई दिनों बाद गया था ।जो कि एक लंबा समय था। फिर भी इस बीच मुझे बहू अपनी मां का हाथ से काम बटाते कहीं नजर नहीं आई।जो बेटी अपने सगी माँ को हर समय काम में व्यस्त रखिए और एक भी बार अपनी मां के लिए मदद करने का न सोचे।वह अपनी ससुराल के बारे में कितना सोच सकती है।उम्र दराज माँ से कम उम्र की जवान हो कर भी स्वयं माँ का हाथ बटाने का जज्बा न रखे। वह ससुराल का दामन कैसे चलाएगी और दूसरे परिवार को कैसे खुश रखेगी।वो किसी और की माँ और किसी अपरिचित परिवार के बारे में क्या सोचेगी।
मुझे अपने बेटे के लिए एक बहू की आवश्यकता है।किसी गुलदस्ते की नहीं।जो किसी फ्लावर पाटॅ में सजाया जाये।
इसलिये सभी माता-पिता को चाहिये।कि वे इन छोटी -छोटी बातों पर अवश्य ध्यान दें।बेटी कितनी भी प्यारी क्यों न हो उससे घर का काम काज अवश्य कराना चाहिए।समय-समय पर डांटना भी चाहिए जिससे ससुराल में।ज्यादा काम पड़ने या डांट पड़ने पर उसके द्वारा गलत करने।की कोशिश ना की जाये।हमारे घर बेटी पैदा होती है।हमारी जिम्मेदारी बेटी से बहू बनाने की है।अगर हमने अपनी जिम्मेदारी ठीक तरह से नहीं निभाई।तो बेटी में बहू के संस्कार नहीं डाले तो इसकी सज़ा बेटी को तो मिलती है।और साथ में माँ बाप को मिलती हैं।जिन्दगी भर के लिए और गालियाँ भी।हर किसी को सुन्दर सुशील बहू चाहिए।लेकिन भाइयो ।जब हम अपनी बेटियों में एक अच्छी बहु के संस्कार डालेंगे।तभी तो हमें संस्कारित बहू मिलेगी।
ये कड़वा है। सोचने और समझने में सच शायद कुछ लोग न बर्दाश्त कर पाएं।
वृद्धाआश्रम में माँ बाप को देखकर सब लोग बेटो को ही कोसते हैं।लेकिन ये कैसे भूल जाते हैं।कि उन्हें वहां भेजने में किसी की बेटी का भी अहम रोल होता है।वरना बेटे अपने माँ बाप को शादी के पहले वृद्धाश्रम क्यों नही भेजते। सच है। पर कड़वा है। पर यही सच्चाई है। सोच के विचार सोच विचार के अच्छा लगे तो एक दूसरे को जागरुक करिए।
धन्यवाद आपका हर दिन शुभ हो सुरेन्द्र कुमार वर्मा (संचालक ) (डॉ शोभाराम स्मारक इंटर कॉलेज अवसानपुर) (M.A Hindi)