व्यापार चाहिए और खरीददार चाहिए और कीड़ों मकोड़ों की तरीके इंसान चाहिए

लाशों पर फलता फूलता व्यापार चाहिए,
कफन बेचता हूँ, खरीदार चाहिए।।

चाहिए चंद बिकाऊ मीडिया हाउस,
कुछ बिके हुए पत्रकार चाहिए।।

झूठ को भी आँखें मूंद सच मान लें।
कुछ अन्धे भक्त, बफादार चाहिए।।

देश की सम्पदा की लगा सकें बोली,
कुछ ऐसे व्यापारी दोस्त तैयार चाहिए।।

हमसे करेगा कौन अस्पताल की बात।
उनको तो बस, धर्म का बुखार चाहिए।।

मर रहे हैं, उनके लिए अफसोस कैसा?
मौतों पर भी, उत्सव तैयार चाहिए।।

जो असपतालों के बाहर हैं, उन्हें पूंछों,
उन्हें बेड नही, धर्मरक्षक सरकार चाहिए।।

मरता हो कोई कल, मर जाए आज,
हमको चुनाव, कुम्भ बरकरार चाहिए।।

अच्छे दिनों का चूरन ऐसा किया कमाल,
सरकार नही, उनको चौकीदार चाहिए।।

चौकीदार हर बार मिला चैन से सोता,
उसको तो बस भाषण दमदार चाहिए।।

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